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ग़ज़ल
न क़ील-ओ-क़ाल से मतलब न शग़्ल-अश्ग़ाल से मतलब
मुराक़िब अपने रहते हैं का कर अपनी गर्दन हम
फैज़ दकनी
ग़ज़ल
क्यों लिया था मिरा दिल दिल मुझे वापस कर दे
छोड़ ये रोज़ की किल किल मुझे वापस कर दे
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
'अंजुम' प्यार जिसे कहते हैं उस के ढंग न्यारे हैं
चुप में है सुख चैन न कोई राहत क़ील-ओ-क़ाल में है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' इक आसेब के डर से घर का घर सब कील दिया
फिर भी इक आसेब है ज़िंदा जिस्म की इन दीवारों में