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ग़ज़ल
वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर
बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिस शय पर वो उँगली रख दे उस को वो दिलवानी है
उस की ख़ुशियाँ सब से अव्वल सस्ता महँगा एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
यूँ मेरी याद में महफ़ूज़ हैं तेरे ख़द-ओ-ख़ाल
जिस तरह दिल में किसी शय की तमन्ना होना
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या