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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
ख़राब सदियों की बे-ख़्वाबियाँ थीं आँखों में
अब इन बे-अंत ख़लाओं में ख़्वाब क्या देते
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
ईंट और पत्थर मिट्टी गारे के मज़बूत मकानों में
पक्की दीवारों के पीछे हर घर कच्चा लगता है