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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मिरा इरादा तो पहले ही से है मान जाने का सच बताऊँ
तुम अपने भर भी तमाम हर्बों को आज़माओ मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक्सर
न बिकने का इरादा हो तो क़ीमत और बढ़ती है
नवाज़ देवबंदी
ग़ज़ल
तुझे दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी