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ग़ज़ल
क्यूँ भटकती फिर रहे हैं आज अरबाब-ए-ख़िरद
क्या जुनूँ के रास्ते में आगही दीवार है
सय्यद मेराज जामी
ग़ज़ल
क्या हो गया इस दौर को अरबाब-ए-ख़िरद को
पड़ने लगे अक़्लों पे रिवायात के पत्थर
ज़हीरुन्निसा निगार
ग़ज़ल
ऐसे इतराते हैं अरबाब-ए-ख़िरद ऐ 'मंशा'
उन के ही हाथों में तंज़ीम-ए-जहाँ है जैसे
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
छीना है सुकूँ दहर का अरबाब-ए-ख़िरद ने
हैं अहल-ए-जुनूँ मोरिद-ए-इल्ज़ाम अभी तक
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
मना लें ख़ूब जश्न-ए-ऐश अरबाब-ए-ख़िरद हमदम
अभी कुछ देर तक महफ़िल में दीवाने नहीं आते
डॉ. फ़ौक़ करीमी
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
रंग पर आई हुई है अब जुनूँ-ख़ेज़ी मेरी
रोज़ ओ शब तौहीन-ए-अर्बाब-ए-ख़िरद करता हूँ मैं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
ऐ मौसम-ए-गुल तशवीश न कर अर्बाब-ए-ख़िरद की बातों पर
ये पंजा-ए-वहशत मेरे हैं हर तार-ए-गरेबाँ मेरा है
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
बरसों उलझे अरबाब-ए-ख़िरद ये एक गिरह अब तक न खुली
सर आप ही झुक गए सज्दे में घबरा के ख़ुदा को मान लिया
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
अरबाब-ए-जुनूँ में हैं कुछ अहल-ए-ख़िरद शामिल
हर एक मुसाफ़िर से मंज़िल को न पूछा कर