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ग़ज़ल
नहीं जाती मता-ए-लाल-ओ-गौहर की गिराँ-याबी
मता-ए-ग़ैरत-ओ-ईमाँ की अर्ज़ानी नहीं जाती
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हो नक़्श अगर बातिल तकरार से क्या हासिल
क्या तुझ को ख़ुश आती है आदम की ये अर्ज़ानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मुझ को अर्ज़ानी रहे तुझ को मुबारक होजियो
नाला-ए-बुलबुल का दर्द और ख़ंदा-ए-गुल का नमक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल का सौदा कर के उन से क्या पशेमानी हुई
क़द्र उस की फिर कहाँ जिस शय की अर्ज़ानी हुई
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
फ़क़ीरी में ये थोड़ी सी तन-आसानी भी करते हैं
कि हम दस्त-ए-करम दुनिया पे अर्ज़ानी भी करते हैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
किसे मिलती हैं वो आँखें मोहब्बत में जो रोती हैं
मुबारक हैं वो आँसू जिन की अर्ज़ानी नहीं जाती
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
महँगाई है दाम मिलेंगे सोचा था हम ने लेकिन
शर्मिंदा हो कर लौटे हैं ख़्वाबों की अर्ज़ानी पर
अखिलेश तिवारी
ग़ज़ल
अब के सहरा में अजब बारिश की अर्ज़ानी हुई
फ़स्ल-ए-इम्काँ को नुमू करने में आसानी हुई