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ग़ज़ल
न तन्हा कुछ यही अतफ़ाल दुश्मन हैं दिवानों के
भरे है कोह भी देखा तो याँ पत्थरों से दामाँ को
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
दीवाना हूँ मैं भी वो तमाशा कि मिरा ज़िक्र
गोया सबक़ अतफ़ाल-ए-दबिस्ताँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तन-दही जब न करें काम में उस्ताद के ये
क़ुमचियों से न उधेड़े वो फिर अतफ़ाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हो गई बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल बे-ज़ौक़-ओ-शुऊर
शाइ'री जो थी मुरादिफ़ मा'नी-ए-इल्हाम की
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
जंग-ओ-जदल के वास्ते आख़िर बड़े क्यूँ आ गए
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल था झगड़ा कोई झगड़ा हुआ
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
शोर तब बस्ती में था अतफ़ाल के पथराव का
अब दिवाने दिल ने डाला जा के वीराने में धूम
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
ये अतफ़ाल-ए-हसीं आशिक़ का जी लेने में शैताँ हैं
जिए आशिक़ वही उन में जो शैताँ हो के मिल बैठे