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ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
कोई पड़ोसी तंग हो चाहे किसी से जंग हो
घर है ये अपने बाप का कोई हमें चुपाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
मिरे बच्चों कहाँ तक बाप के काँधों पे बैठोगे
किसी दिन फ़ेल उस गाड़ी का इंजन हो भी सकता है