aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सब दलीलें तो मुझ को याद रहींबहस क्या थी उसी को भूल गया
न करो बहस हार जाओगीहुस्न इतनी बड़ी दलील नहीं
मस्त हैं अपने हाल में दिल-ज़दगान-ओ-दिलबराँसुल्ह-ओ-सलाम तो कुजा बहस-ओ-जिदाल भी नहीं
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहींफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
गो बहस कर के बात बिठाई भी क्या हुसूलदिल से उठा ग़िलाफ़ अगर तू उठा सके
चले जो ज़िक्र फ़रिश्तों की पारसाई कातो ज़ेर-ए-बहस मक़ाम-ए-बशर भी आता है
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहींडोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
बहस शतरंज शे'र मौसीक़ीतुम नहीं थे तो ये दिलासे रहे
क्या ज़रूरत है बहस करने कीक्यूँ कलेजा कबाब करते हो
उन को क्या फ़िक्र कि मैं पार लगा या डूबाबहस करते रहे साहिल पे जो तूफ़ानों की
शबाब ओ हुस्न में बहस आ पड़ी हैनए पहलू निकलते जा रहे हैं
एजाज़-ए-ईसवी से नहीं बहस इश्क़ मेंतेरी ही बात जान मुजस्सम बहुत है याँ
देर में पहुँचने पर बहस तो हुई लेकिनउस की बे-क़रारी को हस्ब-ए-मुद्दआ पाया
बुतों से पर्दा उठाने की बहस है बेकारखुली दलील है काबा भी बे-नक़ाब नहीं
ग़ज़ल के मंदिर में दीवाना मूरत रख कर चला गयाकौन उसे पहले पूजेगा बहस चली देवताओं में
फिर वही बहस छेड़ देते होइतनी मुश्किल से राब्ता हुआ है
बहस करता हूँ हो के अबजद-ख़्वाँकिस क़दर बे-हिसाब करता हूँ
ज़हीन इतनी है उस से बहस तो हम कर नहीं सकतेमुझे मंटो के अफ़्साने बिला-नाग़ा सुनाती है
वहाँ आशिक़-कुशी है ऐन-ईमाँउन्हें क्या बहस 'अनवर' कुफ़्र-ओ-दीं से
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