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ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
महफ़िल में उस ने ग़ैर को पहलू में दी जगह
गुज़री जो दिल पे क्या कहें 'बिस्मिल' किसी से हम
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
ग़ैर काहे को सुनेंगे तिरा दुखड़ा 'बिस्मिल'
उन को फ़ुर्सत कहाँ है अपनी ग़ज़ल गाने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
क्या कहूँ अंजुमन-ए-नाज़ का हाल ऐ 'बिस्मिल'
सब के चर्चे रहे बस ज़िक्र तुम्हारा न रहा
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
अब मिरा जज़्बा-ए-तौफ़ीक़ है और मैं 'बिस्मिल'
ख़िज़्र गुम हो गए रस्ते पे लगा कर मुझ को