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ग़ज़ल
अब के बरस होंटों से मेरे तिश्ना-लबी भी ख़त्म हुइ
तुझ से मिलने की ऐ दरिया मजबूरी भी ख़त्म हुई
ताहिर फ़राज़
ग़ज़ल
कहीं मौजें सुलगती हैं कहीं तूफ़ान जलते हैं
तिरी फ़ुर्क़त में हम से सैकड़ों इंसान जलते हैं
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
पावे किस तरह कोई किस को है मक़्दूर हमें
ले गया इश्क़ तिरा खींच बहुत दूर हमें
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
भेड़ बकरी से है कम-क़द्र बद-आमाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क़ैस का तुझ में जुनूँ जज़्बा-ए-मंसूर नहीं
वर्ना मंज़िल-गह-ए-दिलदार तो कुछ दूर नहीं