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ग़ज़ल
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
भेड़ बकरी से है कम-क़द्र बद-आमाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब दौर में बेटों की बिक्री ख़ूब होती है
कोई कह दे ये ना-जाएज़ तिजारत हम नहीं करते
रफ़ीक़ अंजुम
ग़ज़ल
शेर बकरी मिल के पानी पीते हैं इक घाट अब
ये हक़ीक़ी वस्फ़ है मिदहत है इस सरकार की
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता