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ग़ज़ल
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला
क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हक़ीक़त से ख़याल अच्छा है बेदारी से ख़्वाब अच्छा
तसव्वुर में वो कैसा सामना होने से पहले था