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ग़ज़ल
ये ही अल्फ़ाज़ मिरी शान हैं सरमाया हैं
कुछ तक़ाबुल नहीं इन का किसी जागीर के साथ
जहाँ आरा तबस्सुम
ग़ज़ल
असलम अंसारी
ग़ज़ल
तक़ाबुल कसरत ओ क़िल्लत का कुछ मअनी नहीं रखता
अंधेरा चीर कर निकले अगरचे इक शरारा हो