कार-ए-अहल-ए-वफ़ा जेहद-ओ-तस्लीम है हम भी तस्लीम में क्या तअम्मुल करें
कार-ए-अहल-ए-वफ़ा जेहद-ओ-तस्लीम है हम भी तस्लीम में क्या तअम्मुल करें
असलम अंसारी
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रोचक तथ्य
Vol: 286, November 2004
कार-ए-अहल-ए-वफ़ा जेहद-ओ-तस्लीम है हम भी तस्लीम में क्या तअम्मुल करें
ज़ात के दश्त कितने ही दरपेश हैं क्या करेंगे अगर फिर तसाहुल करें
ऐ सरीर-ए-क़लम ऐ ज़मीर-ए-जहाँ आप अपनी ज़बाँ में जो लिखना हो लिख
कितने अहवाल हैं ना-नविश्ता अभी क्या मुनासिब है उन से तग़ाफ़ुल करें
हम परेशान-ओ-आशुफ़्ता लोगों में भी इक ज़माना हुआ एक धीरज सा था
अब तो हम ऐसे लोगों की ख़्वाहिश भी है कू-ओ-बर्ज़न में जा ता-ब-शब ग़ुल करें
मेरे अल्फ़ाज़ में मेरा ख़ून-ए-जिगर कैसे कैसे झलकता है देखें कभी
साज़-ए-इश्क़-ओ-हवस गो हम-आहंग हैं फिर भी इश्क़-ओ-हवस में तक़ाबुल करें
अब तो अहल-ए-हुनर एक ही रास्ता आप ऐसों की ख़ातिर खुला है अभी
हर अता-ए-ज़माँ पर तशक्कुर करें हर जफ़ा-ए-जहाँ का तहम्मुल करें
कहना सुनना भी इक वज़-ए-तहज़ीब है कहने सुनने में नक़्स-ए-मरातिब नहीं
इक ज़रा चुप रहें हम भी गुलज़ार में पास-ए-रस्म-ए-हिकायात-ए-बुलबुल करें
टूटती हैं रवायात-ए-मीना-ओ-मय क्या करेंगे एवज़ में मक़ामात के
अहल-ए-तदबीर अभी वक़्त-ए-तदबीर है आएँ और एहतिमाम-ए-तसलसुल करें
वो जो अर्बाब-ए-दानिश हैं उन के लिए इक निसाब-ए-अमल सूझता है मुझे
क्या हैं वो और क्या है ये नज़्म-ए-जहाँ कुछ तफ़क्कुर करें कुछ तअम्मुल करें
स्रोत:
Shabkhoon (Urdu Monthly) (Pg. 718)
- लेखक: Shamsur Rahman Faruqi
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- संस्करण: June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II
- प्रकाशक: Shabkhoon Po. Box No.13, 313 rani Mandi Allahabad
- प्रकाशन वर्ष: June December 2005áIssue No. 293 To 299âPart II
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