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ग़ज़ल
कहते ही नश्शा-हा-ए-ज़ौक़ कितने ही जज़्बा-हा-ए-शौक़
रस्म-ए-तपाक-ए-यार से रू-ब-ज़वाल हो गए
जौन एलिया
ग़ज़ल
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
न जाने कौन सा जज़्बा था जिस ने ख़ुद ही 'नज़ीर'
मिरी ही ज़ात का दुश्मन बना दिया मुझ को
नज़ीर बाक़री
ग़ज़ल
किसी के दिल से अब जज़्बात का रिश्ता नहीं क़ाएम
हँसी भी मस्लहत-आमेज़ आँसू भी सियासी है
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
मुझे प्यार से तिरा देखना मुझे छुप छुपा के वो देखना
मिरा सोया जज़्बा उभारना तुम्हें याद हो कि न याद हो
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
मिटाना था उसे भी जज़्बा-ए-शौक़-ए-फ़ना तुझ को
निशान-ए-क़ब्र-ए-मजनूँ दाग़ है सहरा के दामन में