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ग़ज़ल
दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में
लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तिरे जोश-ए-हैरत-ए-हुस्न का असर इस क़दर सीं यहाँ हुआ
कि न आइने में रही जिला न परी कूँ जल्वागरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
गुल-फ़िशानी-हा-ए-नाज़-ए-जल्वा को क्या हो गया
ख़ाक पर होती है तेरी लाला-कारी हाए हाए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
छुपाया हुस्न को अपने कलीम-उल्लाह से जिस ने
वही नाज़-आफ़रीं है जल्वा-पैरा नाज़नीनों में