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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बिना मर्ज़ी के ये ज़ेवर फ़क़त बंधन बराबर हैं
नहीं जचते किसी के हाथ में बाँधे हुए कंगन
लंकेश गौतम
ग़ज़ल
जचते नहीं निगाह में ख़ुशियों के आफ़्ताब
दिल ढूँढता है किस ग़म-ए-ज़ोहरा-ए-जमाल को