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ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
ज़हर ख़ुद मैं ने पिया है कोई अफ़्सोस नहीं
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
मैं तुम को ख़ुद से जुदा कर के किस तरह देखूँ
कि मैं भी तुम हूँ, कोई दूसरा नहीं हूँ मैं
इफ़्तिख़ार मुग़ल
ग़ज़ल
जिया लेकिन मिरा जीना किसी के भी न काम आया
मैं मरता हूँ कि शायद ज़िंदगी पैग़ाम हो जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल
अब इस से बढ़ के मिरा इम्तिहान क्या होगा
मैं ज़हर पी के जिया हूँ तिरी ख़ुशी के लिए
इबरत मछलीशहरी
ग़ज़ल
मय-ख़ाने में सौ मर्तबा मैं मर के जिया हूँ
है क़ुलक़ुल-ए-मीना मुझे क़ुम-क़ुम से ज़ियादा