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ग़ज़ल
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर
नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मैं तो जब जानूँ कि भर दे साग़र-ए-हर-ख़ास-ओ-आम
यूँ तो जो आया वही पीर-ए-मुग़ाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे
फ़िल्स माही के गुल-ए-शम-ए-शबिस्ताँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
इन ना-तावनियों पे भी थे ख़ार-ए-राह-ए-ग़ैर
क्यूँ कर निकाले जाते न उस की गली से हम