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ग़ज़ल
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कुछ समझ कर रहा हूँ यार की ज़ुल्फ़ों की दाश्त
पालता हूँ अपने कटवाने को जोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
दहन का लब का ज़क़न का जबीं का बोसा दो
हमें तो लेने से मतलब कहीं का बोसा दो
मक़सूद अहमद नुत्क़ काकोरवी
ग़ज़ल
जल गया आग में आप अपने मैं मानिंद-ए-चिनार
पीसते रह गए दाँत अर्रा-ओ-सोहाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मिरे ताइर-ए-नफ़स को नहीं बाग़बाँ से रंजिश
मिले घर में आब-ओ-दाना तो ये दाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने
क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ