aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "دراز"
दामन उस का जो है दराज़ तो होदस्त-ए-आशिक़ रसा नहीं होता
इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्रकाश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताहसखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँकार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
ख़ुशा इशारा-ए-पैहम ज़हे सुकूत-ए-नज़रदराज़ हो के फ़साना है मुख़्तसर फिर भी
दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ादतिरे जुनूँ का ख़ुदा सिलसिला दराज़ करे
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
तू और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुलमैं और अंदेशा-हा-ए-दूर-दराज़
दराज़ दस्त-ए-तमन्ना नहीं किया मैं नेकरम तुम्हारा मुसलसल नहीं हुआ अब तक
ग़ुरूर-ए-ज़ोहद ने सिखला दिया है वाइ'ज़ कोकि बंदगान-ए-ख़ुदा पर ज़बाँ दराज़ करे
रात के पहलू में फैला दीजिए ज़ुल्फ़-ए-दराज़यूँही कुछ तूल-ए-शब-ए-बीमार कम कर दीजिए
हज़रत-ए-ख़िज़्र जब शहीद न होंलुत्फ़-ए-उम्र-ए-दराज़ क्या जानें
फ़लक न दूर रख उस से मुझे कि मैं ही नहींदराज़-दस्ती-ए-क़ातिल के इम्तिहाँ के लिए
उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ मेंलो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
इक इज़्तिराब मुसलसल ग़याब हो कि हुज़ूरमैं ख़ुद कहूँ तो मिरी दास्ताँ दराज़ नहीं
इसी ने मुझ को क़नाअ'त का बोरिया बख़्शाइसी के हाथ से दस्त-ए-दराज़-ए-तम’ है शल
हिज्राँ में उस के ज़िंदगी करना भला न थाकोताही जो न होवे ये उम्र-ए-दराज़ से
रह-ए-दराज़ है और दूर शौक़ की मंज़िलगराँ है मरहला-ए-उम्र गीत गाता जा
तू और सू-ए-ग़ैर नज़र-हा-ए-तेज़ तेज़मैं और दुख तिरी मिज़ा-हा-ए-दराज़ का
अब भी किसी दराज़ में मिल जाएँगे तुम्हेंवो ख़त जो तुम को दे न सके लिख-लिखा लिए
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