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ग़ज़ल
मुदाम जौर-ओ-जफ़ा है तुम्हारी बस्ती में
सितम का बाब खुला है तुम्हारी बस्ती में
अब्ब्दुर्रऊफ़ मख़्फ़ी
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
भड़क जाने की ख़्वाहिश कुछ तो चिंगारी में रहती है
हवा भी उस को शह देने की तय्यारी में रहती है
अशरफ़ याक़ूबी
ग़ज़ल
नाम हमारा दुनिया वाले लिक्खेंगे जी-दारों में
नाच रहे हैं अपनी अपनी लाश पे हम बाज़ारों में
रशीद क़ैसरानी
ग़ज़ल
तेरे लुत्फ़-ओ-करम से जो दामन में मेरे आया है
सीने से वो फूल लगाया ख़ार वो मैं ने चूमा है