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ग़ज़ल
'ज़ौक़' ज़ेबा है जो हो रीश-ए-सफ़ेद-ए-शैख़ पर
वसमा आब-ए-बंग से मेहंदी मय-ए-गुल-रंग से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
गोल पगड़ी नीली लुंगी मूंछ मुंडी तकिया रीश
फिर वो रूमाल और वो अख़-थू नासदानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
'अजाइब शग़्ल में थे रात तुम ऐ शैख़ रहमत है
मैं उस रीश-ए-बुलंद और दामन-ए-कोताह के सदक़े
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
ये रीश ओ जुब्बा ओ दस्तार ज़ाहिद की बनावट है
तबीअत बे-तकल्लुफ़ जिस की हो यकसू नहीं छुपती
ऐश देहलवी
ग़ज़ल
गुरवा बना के रीश-ए-मोख़ज़्ज़ब से मोहतसिब
जाता है उस मक़ाम में जावे जहाँ बसंत
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सुस्त रविश पस्त क़द साँवला हिन्दी-नज़ाद
तन भी कुछ ऐसा ही था क़द के मुआफ़िक़ अयाँ