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ग़ज़ल
जश्न-ए-जमशेद मयस्सर है कि दिल रखते हैं
जाम ये और सही साग़र-ए-जम और सही
मीर मोहम्मद सुल्तान अाक़िल
ग़ज़ल
कोई ऐसा हो आईना कि जिस में तू नज़र आए
ज़माने भर का झूटा क्या हक़ीक़त साग़र-ए-जम की
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
तसद्दुक़ साग़र-ए-जम भी मिरे जाम-ए-सिफ़ालीं पर
लबों तक मेरे साक़ी के यही पैमाना आता है