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ग़ज़ल
ग़ैर वसलत के तिरे और न ख़्वाहिश अपनी
क्या तला नुक़रा-ओ-दीनार-ओ-दिरम चारों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
जब सीम-बर के ग़म से हुआ रंग जूँ तला
तब सब ने जा अज़ीज़ किया मिस्ल-ए-ज़र मुझे