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ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-पर्वर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'उज़्र-आफ़रीन-ए-जुर्म-ए-मोहब्बत है हुस्न-ए-दोस्त
महशर में 'उज़्र-ए-ताज़ा न पैदा करे कोई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
हर रग-ए-दिल वज्द में आती रहे दुखती रहे
यूँही उस के जा-ओ-बेजा नाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'इंशा' जी क्या उज़्र है तुम को नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो
रूप-नगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है