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ग़ज़ल
हम से पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हम ने भी इक शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
कोहकन ओ मजनूँ की ख़ातिर दश्त-ओ-कोह में हम न गए
इश्क़ में हम को 'मीर' निहायत पास-ए-इज़्ज़त-दाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अल्लाह जिसे चाहे उसे मिलती है 'मुज़फ़्फ़र'
इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दुनिया में एहतिराम के क़ाबिल वो लोग हैं
ऐ ज़िल्लत-ए-वफ़ा तिरी इज़्ज़त जिन्हों ने की
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
दर्द का कहना चीख़ ही उट्ठो दिल का कहना वज़्अ निभाओ
सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इज़्ज़त-दारों का