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ग़ज़ल
नहनो-अक़रब की नहीं है रम्ज़ से तू आश्ना
वर्ना वो नज़दीक है तू आप उस से दूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
रक़्स इस ज़ोहरा-जबीं का है अदू के घर में
मेहर मीज़ाँ में है अक़रब में क़मर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले
मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
इश्क़ में गेसू ओ अबरू के अगर देनी है जान
नीश-ए-अक़रब खा के पी ले ज़हर थोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
शब नज़र की मैं ने फ़ुर्क़त में जो सू-ए-आसमाँ
अज़दहा थी कहकशाँ अक़रब हर इक सय्यारा था
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इश्क़ किस ज़ात का अक़रब है कि लगते ही नीश
दिल के साथ आँखों से पानी हो बहा क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
जिन की जीभ के कुंडल में था नीश-ए-अक़रब का पैवंद
लिक्खा है उन बद-सुखनों की क़ौम पे अज़दर बरसे थे
मजीद अमजद
ग़ज़ल
कोई बात अक़रब-ओ-शम्स की कोई ज़िक्र-ए-ज़ोहरा-ओ-मुशतरी
तू बड़ा सितारा-शनास है मुझे कोई अच्छी सी फ़ाल दे
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
हमारा होश हर-दम आश्ना-ए-नहनो-अक़रब है
हुज़ूरी जिस को हासिल हो उसे यारब से क्या मतलब
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
कीना कुछ शर्त नहीं उन की दिल-आज़ारी को
नीश-ए-अक़रब हैं तिरी शोख़ सितम कर पलकें
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
नहनु-अक़रब की सदा देती है ख़ुद मंज़िल मिरी
अब न काबा राह में रोके न बुत-ख़ाना मुझे