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ग़ज़ल
चोर था मुंसिफ़ के दिल में तुझ पे क़ाबिज़ हो गया
वर्ना 'आबिद' था तिरा हक़दार पहला आख़िरी
आबिद उमर
ग़ज़ल
सरसों के खलियान पे क़ाबिज़ अँधियारों के शाकी हैं
मैं तो लहू के दीप जला कर चैन से शब भर सो लूँ हूँ
रशीदा अयाँ
ग़ज़ल
मिरी नुसरत पे क़ाबिज़ हो रही है मेरी पस्पाई
थके-हारे किसी लम्हे में मैं भी सो रहा हूँगा
जमाल ओवैसी
ग़ज़ल
कमल कटारिया करन
ग़ज़ल
मेरे तसव्वुरात में क़ाबिज़ हो सिर्फ़ तू
हर लम्हा ज़ेहन-ओ-दिल में तू अपना ख़याल दे
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
ग़ज़ल
इस क़दर आँखों पे क़ाबिज़ है वो जाना उस का
इस तरफ़ आता दिखाई नहीं देता कुछ भी
डॉ भावना श्रीवास्तव
ग़ज़ल
सिफ़त बस्त-ओ-क़ाबिज़ की तुख़्म-ओ-शजर है
जो बू है सो गुल है जो गुल है सो बू है