आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "قدغن"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "قدغن"
ग़ज़ल
काली घटाएँ बाग़ में झूले धानी दुपट्टे लट झटकाए
मुझ पे ये क़दग़न आप न आएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हम-नशीं तू जो ये कहता है कि क़दग़न है बहुत
अब वो आवाज़ भी कब तुझ को सुना सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बंदा-परवर सिर्फ़ नज़्ज़ारे पे क़दग़न किस लिए
फूल फल जो बाग़ के थे आप की झोली में थे
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
वज़ीर-उल-मुल्क का अज़-बस-कि मय-ए-नोशाँ पे क़दग़न है
बजाए मय, है वो याँ कौन जो कत्था नहीं पीता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हर फूल पे क़दग़न कि तिरी शक्ल पे निकले
हर ज़ख़्म पे लाज़िम कि तिरा दस्त-ए-निगर हो