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ग़ज़ल
ऐ 'ज़फ़र' लिख तू ग़ज़ल बहर ओ क़वाफ़ी फेर कर
ख़ामा-ए-दुर-रेज़ से हैं अब गुहर-बारी में हम
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
एक ढब के जो क़्वाफ़ी हैं हम उन में 'इंशा'
इक ग़ज़ल और भी चाहें तो सुना सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
कह ब-तब्दील-ए-क़वाफ़ी ग़ज़ल इक और भी 'ज़ौक़'
देखें बिठलाए है किस तरह से तू टूट गए
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
लिख ब-तब्दील-ए-क़वाफ़ी ग़ज़ल इक 'मुसहफ़ी' और
नाफ़ा-ए-नुक़्ता से कर मुश्क-ए-ततारी तय्यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
गर तिरे वज़्न पे मैं सारे क़्वाफ़ी बाँधूँ
दम तिरा नाक में ऐ बाब-ए-तफ़व्वुल पहुँचे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
आफ़ताब शाह
ग़ज़ल
इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार
इस ग़ज़ल पर है क़वाफ़ी का करम दो-बटा-चार
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
ग़ज़ल
तुम्हारे पास क़वाफ़ी ख़याल लाते हैं
मेरा ख़याल ही रहबर है क्या किया जाए
अब्दुस समी सिद्दीक़ी नईम
ग़ज़ल
ऐ 'मेहर' तब-ए-बर्क़ ने बेताब दिल किया
मज़मूँ चमक-दमक के क़वाफ़ी बला के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
ग़ज़ल
क़वाफ़ी चंद दाम-ए-फ़िक्र तक पहुँचे थे ऐ 'साइर'
ये अल्फ़ाज़-ए-हसीं अशआ'र की तश्कील तक पहुँचे
ज़हीर अब्बास सायर
ग़ज़ल
ग़ज़ल में मतला' कहो तो हर-चंद देख लेना
कि मिसर’ओं के क़वाफ़ी आपस में ज़म भी हैं ना