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ग़ज़ल
मशहूर-ए-ख़ल्क़ जो है वो मक़्बूल-ए-हक़ नहीं
क्यूँ अहमक़ों को नाज़ हुआ है नुमूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मैं खिलौने की तरह देख रहा हूँ 'मक़्बूल'
तोड़ने वाला मुझे कितना बना सकता है
मक़बूल हुसैन सय्यद कर्नल
ग़ज़ल
वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है
जो मुँह से दिस कहे तो उस का मतलब दैट होता है
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
साहब-दिलों को हक़ ने दिया है हुज़ूर-ए-क़ल्ब
मक़्बूल किस तरह से नहीं हो दुआ-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
जगह दी मुझ को काबे में ख़ुदा-ए-पाक ने ज़ाहिद
तू कहता था कि मक़्बूल-ए-हरम ऐसा भी होता है