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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मशक़्क़त की नहज इक दिन उन्हें कुंदन बनाती है
जो बच्चे मुफ़्लिसी की ज़द में बस्ते भूल जाते हैं
नासिर मारूफ़
ग़ज़ल
बाग़ पर बिजली गिरे या नज़्र-ए-गुलचीं हो रहे
आह अब सोचों के धारे इस नहज पर आ गए