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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
गो सितम ने तेरे हर इक तरह मुझे ना-उमीद बना दिया
ये मिरी वफ़ा का कमाल है कि निबाह कर के दिखा दिया
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
रह-ओ-रस्म क़ल्ब ओ निगाह के वो तुम्हारे दावे निबाह के
वो हमारा शेख़ी बघारना तुम्हें याद हो कि न याद हो