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ग़ज़ल
कू-ब-कू खुलते नहीं निखरी हुई ग़ज़लों के बाग़
इम्तिज़ाज-ए-फ़ुर्सत-ए-तफ़रीह ले कर क्या करें
जमीलुद्दीन क़ादरी
ग़ज़ल
'सदफ़' इक उम्र के बाद आज हम दिल खोल कर रोए
ज़माना हो चला था दिल को ये निखरी फ़ज़ा देखे
शाहिदा सदफ
ग़ज़ल
दिल में यूँ है तिरी निखरी हुई ज़ुल्फ़ों का ख़याल
जैसे मतला पे धुँदलका हो घटा से पहले
सरोश लखनवी
ग़ज़ल
दिल में यूँ है तिरी निखरी हुई ज़ुल्फ़ों का ख़याल
जैसे मतला पे धुँदलका हो घटा से पहले