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ग़ज़ल
निहाँ है दिल पज़ीरी जिस के हर हर लफ़्ज़-ए-शीरीं में
ये किस जान-ए-वफ़ा के हाथ की रंगीं निगारिश है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
तिरी निगाह-ए-निगारिश-तलब को क्या मालूम
कि हर्फ़-ओ-सौत से गुज़रा तो क्या से क्या हुआ मैं
तालिब हुसैन तालिब
ग़ज़ल
निगारिश मक़सद-ए-तख़लीक़-ए-बर्ग-ए-गुल पे है लेकिन
किसे है ताब-ए-नज़्ज़ारा चराग़-ए-तूर जलता है
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
तहरीर जो चेहरों की किताबों में थी लिक्खी
तुम ग़ौर से पढ़ते तो निगारिश भी बहुत थी
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
अपनी ही धुन में मगन रहता है सच्चे सुर का साज़िंदा
जैसे कि मैं हूँ मतवाला ख़ुद अपने तर्ज़-ए-निगारिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
चाहूँ कि हाल वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
भागें हुरूफ़ वक़्त-ए-निगारिश क़लम से दूर