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ग़ज़ल
चाँद सितारे फूल परिंदे शाम सवेरा एक तरफ़
सारी दुनिया उस का चर्बा उस का चेहरा एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुझे आप क्यूँ न समझ सके ये ख़ुद अपने दिल ही से पूछिए
मिरी दास्तान-ए-हयात का तो वरक़ वरक़ है खुला हुआ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
यूँ अपनी प्यास की ख़ुद ही कहानी लिख रहे थे हम
सुलगती रेत पे उँगली से पानी लिख रहे थे हम
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
दबा रक्खा है इस को ज़ख़्मा-वर की तेज़-दस्ती ने
बहुत नीचे सुरों में है अभी यूरोप का वावैला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
महर ओ मह उस की फबन देख के हैरान रहे
जब वरक़ यार की तस्वीर-ए-दो-रू का निकला