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ग़ज़ल
हो गया हूँ क़त्ल बे-रहमी से उन के सामने
हैफ़ जिन लोगों को अपना पासबाँ समझा था मैं
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना
लाज़िम है पासबाँ से अब हम को साज़ करना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
असीर-ए-ज़ुल्फ़ दीवाने हैं देख ऐ पासबाँ शब को
दबा कर बैठ उन के पाँव की ज़ंजीर पहलू से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए