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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में
उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
अनल-हक़ कहने वाले आज भी मौजूद हैं लेकिन
उन्हें इस दौर में फाँसी पे लटकाया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
न गर्दन मारते हैं वो न देते हैं कभी फाँसी
हसीनों को ये सब मशहूर क्यूँ जल्लाद करते हैं
ज़रीफ़ लखनवी
ग़ज़ल
चढ़ते हैं लोग फाँसी पे किस जुर्म के तहत
तख़्ती तो पढ़ ही लेते हो तख़्ते पढ़ा करो
समीना रहमत मनाल
ग़ज़ल
जिन्हें बालों की फाँसी दी वो हरगिज़ जी नहीं सकते
जो ज़ुल्फ़ों में फँसाया उस के ग़म खाने से क्या हासिल
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
गला घुटने लगा अब तंग आया हूँ गरेबाँ से
जुनूँ ने वाह क्या फाँसी लगाई मेरी गर्दन में
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
ज़ोफ़ के हाथों हुए फ़स्ल-ए-जुनूँ में तंग हम
हो गया फाँसी हमें अपना गरेबाँ आज-कल