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ग़ज़ल
शब-ए-ज़ुल्म नरग़ा-ए-राहज़न से पुकारता है कोई मुझे
मैं फ़राज़-ए-दार से देख लूँ कहीं कारवान-ए-सहर न हो
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
उतरा न आ के याँ कोई जुज़ कारवान-ए-ग़म
मेहमाँ-सरा से कम नहीं यारो सरा-ए-दिल
आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
ग़ज़ल
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
है सफ़र में कारवान-बहर-ओ-बर किस के लिए
हो रहा है एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर किस के लिए