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ग़ज़ल
दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
रहेंगी उन के संदूक़चा में दीं की कुंजियाँ कब तक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुझे क़स्र-ए-ताबीर की उस ने सब कुंजियाँ सौंप दीं
मगर छीन कर ख़्वाब आँखों से अफ़्लाक पर रख दिया