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ग़ज़ल
किश्त-ओ-ख़ूँ में कट रहे हैं इस तरह लोगों के सर
आदमी है आज-कल मूली का या गाजर का नाम
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक