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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-दिल-ओ-जाँ अपने सर है अपना लहू अपनी गर्दन पे
मोहर-ब-लब बैठे हैं किस का शिकवा किस के साथ करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
कुश्ता-ए-नाज़ की गर्दन पे छुरी फेरो जब
काश उस वक़्त तुम्हें नाम-ए-ख़ुदा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
जिस पे होता ही नहीं ख़ून-ए-दो-आलम साबित
बढ़ के इक दिन उसी गर्दन में हमाइल हो जाओ