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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल मेरा करे वो चारागर कैसे
जो दिल गुर्दे को समझे और जिगर को फेफड़ा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
आलम के मुरक़्क़े में तस्वीर उसी की है
सब हुस्न यहाँ यारो उस हुस्न के हैं गर्दे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है