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ग़ज़ल
बाग़बाँ गुलचीं को चाहे जो कहे हम को तो फूल
शाख़ से बढ़ कर कफ़-ए-दिलदार पर अच्छा लगा
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दस्त-ए-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुल-चीं भी
बू-ए-गुल ठहरी न बुलबुल की ज़बाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
गुलचीं ने तो कोशिश कर डाली सूनी हो चमन की हर डाली
काँटों ने मुबारक काम किया फूलों की हिफ़ाज़त कर बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कहा बुलबुल ने जब तोड़ा गुल-ए-सौसन को गुलचीं ने
इलाही ख़ैर कीजो नील-ए-रुख़्सार-ए-चमन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
बुरा गुलचीं को क्यूँ कहिए बुरे हैं ख़ुद चमन वाले
भले होते तो क्या मुँह देखती रहती बहार अब तक