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ग़ज़ल
वो ज़ालिम भी तो समझे कह रखा है हम ने याराँ को
कि गोरिस्तान से गाड़ें जुदा हम अहल-ए-हिज्राँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़बर की थी गुलिस्तान-ए-मोहब्बत में भी ख़तरे हैं
जहाँ गिरती है बिजली हम उसी डाली पे जा बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बयान-ए-पाएमाली शिकवा-ए-बर्क़-ए-तपाँ हो जा
गुलिस्तान-ए-जहाँ के पत्ते पत्ते की ज़बाँ हो जा
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
नौ ख़त तो हज़ारों हैं गुलिस्तान-ए-जहाँ में
है साफ़ तो यूँ तुझ सा नुमूदार कहाँ है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
मैं दुआ करता हूँ तू शहर-ए-चराग़ाँ में रहे
तिरा हर ख़्वाब-ए-गुलिस्तान मुबारक हो तुझे