आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ہفتہ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "ہفتہ"
ग़ज़ल
यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन
तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुद अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़ितरत-ए-हुस्न तो मा'लूम है तुझ को हमदम
चारा ही क्या है ब-जुज़ सब्र सो होता भी नहीं