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ग़ज़ल
वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन
असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
शबाहत पे अदाकारी असर-अंदाज़ होती है
अभी तक तो ये चेहरा है कहीं ग़ाज़ा न हो जाए
अहमद कमाल परवाज़ी
ग़ज़ल
लबों पर मोहर-ए-ख़ामोशी है आँखें डबडबाई हैं
असर-अंदाज़ अपनी बे-ज़बानी ले के आया हूँ
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
मुतमइन ख़ुद ही नहीं फिर असर-अंदाज़ हो क्या
पंद-ए-वाइज़ अभी अंदेशा-ए-अंजाम में है