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ग़ज़ल
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
तो आख़िर साज़-ए-हस्ती क्यूँ तरब-आहंग-ए-महफ़िल था
नशात-आईन कैफ़-ए-बे-दिली यारब अगर दिल था
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
उफ़ ये तूफ़ान-ए-नशात और मिरी तब'-ए-हज़ीं
आह ये यूरिश-ए-नाज़ और मैं मजरूह ओ अलील
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बहार है या शराब-ए-रंगीं नशात-अफ़रोज़ कैफ़-आगीं
गुलों के साग़र छलक रहे हैं गुलों पे बुलबुल चहक रहे हैं
असर सहबाई
ग़ज़ल
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कोई भी दुनिया में अपना हम-नवा मिलता नहीं
नग़्मा-ज़न हैं सैकड़ों नौहा-सरा मिलता नहीं